साहित्य बहुत विस्तृत आ व्पापक शब्द छैक । शब्द, बोली तथा भाषाके भाव प्रकट करबाक माध्यम होइत अछि साहित्य ।
एकर स्वरुपके निर्धारण केनाइ अत्यन्त कठिन कार्य मानल गेल छैक । साहित्यमे कविता एकटा विधा छैक आ सबसँ अधिक लिखवला कोनो विद्या छैक साहित्यमे त ओ विद्या कविता छैक । कहल जाए छै कविता साहित्यके भाव प्रकट करबाक सबसँ लोकप्रिय तथा सरल विद्या छैक ।
कविता मूल रुपसँ पद्य आ गद्य शैलीमे लिखल जाए छैक । आधुनिक कविता लिखबाक शैली विशेष क’ गद्ये अछि , जाहिमे शास्त्रियता आ पाँण्डितायसँ बेसी कथ्य, संप्रेषण,प्रभावके प्रधानता रहैत छैक । मुदा पद्य अर्थात छन्द कविताके महत्व कनेको कम नै । कहल जाए छै कविता साहित्यके भाव प्रकट करबाक सबसँ लोकप्रिय तथा सरल विद्या मानल गेल छैक ।
‘शहरक भीडमे एसगर हम’ पुस्तक पढबाह अवसर भेटल । अहि पुस्तकमे गद्य शैलीमे लिखल एकावनटा कविताके संग्रह अछि । अहि संग्रहके विशेषता एकेटा शहर शीर्षक अन्तर्गत सबटा कविता लिखल गेल अछि ।
कवि धर्मेन्द्र विह्वलके एकटा यशस्वी पत्रकारके रुपमे हमसब जनैत छी । मुदा ब्यक्तीके अनेक परिचय आ रुप होइत छै जाहिमे ई संग्रह कवि विह्वलके एकटा शक्तिशाली कविके रुपमे ठाढ क’ देने अछि । ओ अपन कविताके मादे निश्चित रुपसँ आजुक पीढीके अग्रणी कविके पाँतिमे ठाढ छथि ।
कालक्रमके दृष्टिकोणसँ लगभग बीस वर्ष साधनाके प्रयास थिक ‘शहरक भीडमे एसगर हम’ । नेपालमे विक्रम सम्ब्त २०४७ स ल क २०६६ तकके समय नेपालमे ब्यापक राजनीतिक तथा समाजिक परिवर्तनके साक्षी अछि ।
ई संवेदनशील कालखण्डके प्रभाव सृजनाके क्षेत्रमे सेहो ब्यापक भेलै । साहित्य तथा कला दृष्किोणसँ अति उर्वर समय छलै । अहि समयावधिमे लिखल कविता, गीत सब समाज परिवर्तनमे सहयोगिक माध्यम बनलै ।
कवि धर्मेन्द्र विह्वल अपन कविताके माध्यमसँ शहरीपनके विसङ्गति, विद्रुपता, विखण्डनवबादी सोच, मानसिक जटिलता आ स्वार्थक सीढीपर ठाढ समाजमे कवितासबके मादे वैचारिक विमर्श प्रस्तुत क’ रहल छथि । संकीर्ण मानवीय संवेदनाके अर्थात संवेदनहिनताके झकझोरि रहल छथि ।
कविके अहि संग्रहमे पस्तुत एकावनटा कवितासबके भेद, शैली प्राकृत अर्थात यथार्थवादी, प्रगतिवादी श्रेणीके अछि । ओ अपन कवितामे विचारिक बिम्बके मादे अराजकता दिशि बढैत समाजके सम्वेदना पर कठोर वैचारिक प्रहार करैत सुसुप्त चेतनाके जगाबाक प्रयास केने छथि ।
अन्धकारक अहि युगमे
जत सभकेँ
अन्हारे नीक लगैत छै
अपनोसँ बेसी नीक
सबसँ बेसी नीक … शहर ४
बेहिसाब कंक्रीटक जंगल जकाँ बढैत शहर आ यन्त्र जकाँ अपसियाँत भागैत मनुषसबके देखि एहन छद्मतापर चोट करैत कहैत छथि
एहिबेर ई शहर घरक जंगल क्रमशः
बढल अछि,बढि रहल अछि
आदमीसन अप्राकृतिक आकृतिकसबहक
हेज सेहो बढल छैक
मुदा लोक हेबाक
अर्थ आ मान्यतासब
विलुप्त प्रायः अछि … शहर ३७
आइ अनायास
शहरक मुडेरपर
सहस्रो गिद्घसभ बैसल छै ।।
महाभोजमे सहभागी हेबाक
एतय किछु अनिष्ट
होब जा रहल छै … शहर ४४
कविता लिखबाक प्रयोजन होइत छैक ओकर औचित्य सेहो होइत छैक । प्रश्न छै कविता केकरा लेल आ किएक लिखल जाए छैक ? जेकरा लेल अर्थात जाहि पात्र या बिम्बके ठाढ क लिखल जाए छैक कविता ओ लोक-पाठक पढैत छैक ?
निश्चितरुपसँ साहित्यसँ ताहुमे मैथिली साहित्यसँ आ ताहुमे कवितासँ प्रेम सिनेह करबला लोक नगण्य छैक मुदा जतेक छथि पारखी छथि गुणी छथि । अहि संग्रहमे मिथिला चित्रकलाके प्रख्यात चित्रकार श्री एस.सी. सुमन रेखाचित्रके माध्यमसँ कविताके भाव आ अर्थ के बुझेवाक सार्थक प्रयास केने छथि ।
सुमन मिथिला चित्रकलाके उत्कृष्ट चित्रकारके सगहिँ साहित्यके सेहो गुणी विश्लेषक छथि । कविता आ कला दुनुके गुढ तत्वके मीमान्सा केनाइ बड कठिन होइछै । ई संग्रहके कला आ शब्दके फ्युजन कहब त’ अनुचित नहि । वास्तवमे कवि धर्मेन्द्र विह्वल आ एस.सी. सुमनजीके संयुक्त सृजनात्मक कृति अछि ।
ई कृति कवि धर्मेन्द्र विह्वलके यश श्रीवृद्घिके साथ साथ साहित्यमे एकटा उच्च स्थान ग्रहण करत से विश्वास अछि ।