कर्ण संजय
चित्रगुप्त पूजा कायस्थ वर्गमे खूब धूमधाम आ उत्साहपूर्वक मनाओल जाइत अछि । कायस्थ चित्रगुप्तके अपन इष्टदेव, आदिपुरुष मानैत छैक । चित्रगुप्त जयन्ती दिवालीके दोसर दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीयाके अर्थात भारद्वितियाके अवसर पर विश्व भरिके कायस्थ लोकनि पुस्तक, कलम, द्वातिके पूजा करैत छथि । चित्रगुप्त पूजाके सरल भाषामे द्वाति पूजा सेहो कहल जाइत छैक । प्राचिनकालस“ आधुनिक वर्तमानमे चित्रगुप्त जन्मोत्सव पूजाके रुपमे आऔर महत्वपूर्ण तथा सान्दर्भिक भेल अछि । 
कथा
महाभारतके अनुसरन पर्वमे प्रसङ्गवस भीष्म पितामह युधिष्ठरके एकटा कथाकके माध्यमसँ चित्रगुप्तक उत्पतिक कारण आ महत्व कहलखिन्ह । सतयुगमे भगवान विष्णुके नाभिकमलसँ ब्रम्हाजीक उत्पति भेल । ब्रम्हाजीक मूँहसँ ब्राम्हण, भुजासँ क्षत्री, जाँघसँ वैश्य तथा पयरसँ शुद्रके उत्पति भेल । तेकर पश्चात देव गन्धर्व दानव नाग सर्प जल वृक्ष पर्वत नदी आदि । मनु, दक्ष प्रजापति, नागकन्या सहित विभिन्न प्राणी जीव जगतमे उत्पतिके बाद धर्मराजके धर्म प्रधान मानि अधिकार दैत ब्रम्हाजी आज्ञा देलखिन जे संपूर्ण जगतके प्राणीके शुभ अशुभ कर्मके आधारपर ओकर फल निर्धारण कएल जाए । वेदमे निर्धारित विधि अनुसार न्ययापूर्वक कर्मफल देल जाए । ब्रम्हाजीके आज्ञा सुनि धर्मराज अशोथकित भए गेला । ओ दुनु हाथ जोडि ब्रम्हाजी स“ निवेदन केलनि जे प्रभु सृष्टिमे जीव आ ओकर देह अनन्त छैक । देशकाल ज्ञात–अज्ञात भेद अनुसार कर्म सेहो अनन्त छैक । अहि अन्नत कर्मके फल सेहो अनन्त । कोन कर्ता कतेक कर्म केलक, कतेक भोगलक, कतेक शेष रहलै आऔर कर्मके सेहो अनेक भेद होइत छै । जाहि भेदमे कर्ता स्वयं केलक या दोसरके प्रेरणास“ केलक । एहन दुरह तथा महागहन विषयके एसगर गणनामे त्रुटि भए सकैत अछि ताहि हेतु एकटा सहायक देल जाओ । एकटा एहन सहायक जे तेज,बुद्विमान,न्यायवेत्ता,धर्मशील,ब्रम्हनिष्ठ,वेदज्ञाता तथा लेखन कार्यके चतुर आ निपुण हो ।
धर्मराजके विन्ती सुनि ब्रम्हाजी चिन्तित भए गेला । अतेक महाज्ञानी महापुरुषके चिन्तामे ब्रम्हाजी ध्यानमग्न भए गेला । वएह ध्यान अवस्थामे एक हजार वर्ष बीत गेल । एक हजार वर्षक तपस्याके पश्चात जखन समाधि खुजलनि तऽ देखलखिन एकटा तेजश्वी श्याम वर्ण,कमल नयन,चन्द्रमा समान तेज मुखमण्डल, हाथमे कलम,द्वाति,जल लेने महाबुद्घि, धर्म अधर्ममे प्रवीण, कर्म चतुर पुरुषके देखि ब्रम्हाजी पुछलखिन अपने के थिकौ ? पुरुष निवेदन केलनि हे प्रभो हम अपन माता पिताके नहि जानैत छी परन्तु अपनेके कायास“ हमर उत्पति भेल अछि । अपने हमर नामाकरण कए, कार्य देल जाओ । ब्रम्हाजी कहलखिन, तों हमर कायास“ प्रकट भेला से तों कायस्थ । ध्यान (चित्र) के कारण उत्पन आ कार्य गुप्त रखबाक प्रयोजन हेतू चित्रगुप्त अर्थात कायस्थ चित्रगुप्त । धर्मराजके सहायक बनि संपूर्ण जीव जगतके शुभ अशुभ कर्मशुत्र लिखै वास्ते तोहर उत्पति भेल छौ । ब्रम्हाजीके आदेश अनुसार धर्मराज स“गे चित्रगुप्तजी धर्म कर्म तथा लेखा जोखा कार्यमे लगलाह ।  किछु दिन पश्चात चित्रगुप्तजी कोटीनगर नामक स्थानमे जाए चण्ड–प्रचण्ड ज्वलामुखी कालीके घोर स्तुति तथा तपस्या केलनि । ओहि तपस्यास“ प्रशन्न भ’ देवी चित्रगुप्तके परोपकारमे कुशल,अधिकारमे सर्वदा स्थिर आ अन्नत वर्षके आयुके प्राप्ती वरदान देलखिन । वरदान प्राप्त भेलाके बाद चित्रगुप्तजी अपन लौकि तथा परलौकिक क्रिया कर्ममे ब्यस्त भ’ गेला ।
किछु समय पश्चात ब्रम्हाजी के आज्ञास“ सुशर्मा ऋषिके पुत्री इरावतीके विवाह चित्रगुप्त भेलनि । जाहि मे आठ संतान चारु,सुचारु,चित्र,मतिमान,हिमवान,चित्रचारु,अरुण आ वीर्यवान प्राप्त भेलनि । चारुके विवाह पद्मिनीस“ भेलनि आ मथुरामे बसलाके कारण माथुर भेला । सुचारुके विवाह पंजाक्षीस“ गौड–बंगालमे गौड भेला । चित्रके विवाह भद्रकालिनीस“ भट नदिनगरस“ भटनागर । मतिमानके विवाह नर्वदास“ सखसेननगरमे सक्सेना । हिमवानके विवाह भृगकाक्षीस“ अम्बानगरमे अम्बष्ठ ।  चित्रचारुके विवाह गण्डकीस“ निगम । चित्रवान (अरुण)के विवाह कौकलेसुतास“ कर्णाट प्रदेशके कर्ण । आतीन्द्रीयके विवाह कामकलास“ कुलश्रेष्ठ । चित्रगुप्तके दोसर विवाह श्रद्घादेव नामक मनुक पुत्री दक्षिणा (नन्दिनी) स“ भेलनि जाहिस“ चारि पुत्र भानु,विभानु,विश्वभानु तथा वीर्यभानु । भानुके विवाह नर्वदास“ भेलनि । ओ श्रीवस्तनिगर बसलाके कारण श्रीवास्तव । विभानुके विवाह मालतीस“ सुर्यध्वज । विश्वभानुके विवाह मधुभाषिनीस“ वाल्मिकी आऔर वीर्यभानुके विवाह स्निग्धादेवीस“ जे अष्ठाना कायस्थ भेलाह । एहि प्रकारे आदिकालस“  कायस्थके बारह शाखा बनल जे निरन्तर विस्तार भेल आ भ’रहल अछि । भारतके अनेक प्रदेश,नेपाल स“गहि विदेशमे कायस्थ लोकनि अपन जातिके मान प्रतिष्ठा बढौलनि आ बढा रहल छथि । कायस्थ परिवारके शिक्षा,प्रशासन,ज्ञान–विज्ञान,कला–संस्कृतिके क्षेत्रमे उच्च शोभा बढा रहल छथि । अहि पृथ्वी पर मानव जातिके इतिहासमे कायस्थ सपूतक योगदान अति प्रशंशनीय अछि । कायस्थके अपन जाति पर हरदम गर्व करबाक चाही ।
पूजा विधि
पूजा स्थलके साफ सुथरा कए चौकी पर नव कपडा बिछा भगवान चित्रगुप्तके प्रतिमा अथवा मूर्ति स्थापित करी । गणेशके संमुख दीप जरा तथा मार्कण्डेय मुनीके सहित चन्दन,हल्दी,रोली मोली,दुबि,फूल,अक्षत पूजा अर्चना कए फल,मिठाइ,मेवा,पकवान,पञ्चामृत, पान–सुपारीस“ भोग लगाबी । परिवारक सब सदस्य अपन अपन पुस्तक,कलम,दुवाति आदि सहित चित्रगुप्त भगवानके संमुख राखी ओहिमे एक पत्ता कागजपर चित्रगुप्तजीके मंत्र लिख   पूजा करी । अन्तमे ब्रम्हण पुरोहितस“ पूजा कथा सुनि विधिपूर्वक आरती कए पूजा समापन होइत अछि । पूर्वमे किछु लोकसभ कागजपर चाउरक आटा,हल्दी,अबीर,घी,पानि तथा रोलीस“
स्वस्तिक बनाबै छलथि । नीचा मे चित्रगुप्त सहित पा“चटा देवताके नाम, अपन आय–व्यय,नाम,पत्ता तथा अपन हस्ताक्षर सहित पवित्र जलाशयमे प्रवाहित करैत छलाह । जाहिस“ धन विधा प्राप्त होबए के मान्यता छल । पूजाके दोसर दिन विधिपूर्वक आरती कए कानो नदी अथवा जलासयमे प्रतिमा बिसर्जन कएल जाइत अछि ।
 
प्राचिन मन्दिर
पवित्र गंगा नदिके तटपर दिवान मोहल्ला स्थित पटना सिटीके चित्रगुप्त भगवानके मन्दिरक निमार्ण प्राचिन मगधके राजा  महापद्मानन्द (३६४–३२६ बीसी) के महामन्त्री मुद्रराक्षसके द्वारा कराओल गेल अछि । जाहिमे चित्रगुप्तके बसाल्ट–काला पथ्थरके मूर्ति मुगल राजा अकबरके नवरत्न टोडरमलके हाथस“ स्थापित भेल छल ।  
तामिलनाडुके का“चीपुरम स्थित चित्रगुप्त मन्दिर चोल राजवंशके ९वम् शताब्दीमे निर्माण कएल गेल अछि । कहल जाइत अछि दक्षिनात्य चोल,चालुक्य,पाल, राष्ट्रकुट सब कायस्थ कुल राजवंश छल । 
मध्यप्रदेशके प्रसिद्घ खजुराहो स्थित सूर्य मन्दिरके लगभग दु सय मीटर पर चित्रगुप्तजी के प्रसिद्घ मन्दिरक निमार्ण कएल गेल अछि । एहि मन्दरसभके निर्माणकाल १२म् शताब्दीके अछि । एहि प्रकारे पुराना हैदरावाद स्थित चित्रगुप्त मन्दिर २०० वर्षस“ अधिक पुरान अछि । आधुनिक कालमे नेपाल आ भारतके अनेक शहर, गाम,टोलसभमे चित्रगुप्त मन्दिरके निर्माण कएल गेल अछि आ प्रत्येक वर्ष कायस्थ लोकनि चित्रगुप्त जयन्ती आ पूजा उत्साहपूर्वक संपन्न कए रहल छथि ।
एतेक गौरबशाली कायस्थ जातिके इतिहा“स अछि । आवश्यकता छैक चित्रगुप्त पूजा विभिन्न वर्ग–उपवर्गमे विभाजित संपूर्ण कायस्थके एक दोसरस“ जोडबाक प्लेटफर्म बनै जतए कायस्थके कमजोर तथा विपन्न लोकसभमे शिक्षा, स्वास्थ तथा समाजिक संस्कारमे योगदान करै संगहि समाजके अन्य जाति–वर्गमे सहयोजन तथा सह–अस्तित्व बनल रहै । अतः अपन जातिय गौरबमय संस्कार आ संस्कृतिके प्रचार प्र्रसार चित्रगुप्त पूजाके माध्यमस“ निरन्तरता बनल रहै । 

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