छइठ, छठ, छठि आदि मूलतः षष्ठी शब्द के अपभ्रंश थीक | पौराणिक मान्यता अनुसार षष्ठी देवी मूल प्रकृति के छठम स्वरूप थिकीह जिनका भगवान सूर्य के बहिन आ माता कात्यायनी के नाम सॅ सेहो जानल जाइत अछि |
एहि पाबैन के देवीक रूपमे माता षष्ठीक पूजा होइत अछि | शुक्लपक्ष के छठम दिन आ काली पूजा के ६ दिनक बाद छइठ मनाओल जाइत अछि | छइठ पाबैन मूलतः सूर्य के आराधनाक पर्व थीक जकरा हिन्दू धर्म मे विशेष स्थान प्राप्त छैक | हिन्दू धर्म के देवता सभमे सूर्य एहेन देवता छथि जिनका मूर्त रूपमे देखल जा सकैत अछि | सौर्य मण्डल केॅ सन्तुलित आ नियन्त्रित कयनिहार सूर्य देव जगदात्मा कहबैत छथि | ई एहि ब्रह्माण्डक आधार देव थीकाह |
सूर्य के शक्तिक मुख्य स्रोत हिनक पत्नी उषा आ प्रत्युषा (सन्ध्या) थिकीह | छइठ मे सूर्य के सॅंग एहि दुनु शक्तिक संयुक्त आराधना होइत अछि | प्रातःकाल मे सूर्य के पहिल किरण (उषा) आ सायंकाल मे अन्तिम किरण (सन्ध्या) केॅ अर्घ्य दऽ नमन कयल जाइत अछि | पारिवारिक सुख समृद्धि एवं मनोवांछित फल-प्राप्ति हेतु स्त्री आ पुरुष द्वारा समान रूप सॅ छठिक व्रत कयल जाइत अछि | सनातन सॅ एहि पाबैन मे जाति अथवा लिंग के आधार पर कोनो भेदभाव नहि कएल गेल अछि |
छइठ प्रकृति पूजा के पाबैन थीक जाहि मे गृहस्थ लोकनि सूर्य, जल, पृथ्वी, वायु आ आकाश प्रति कृतज्ञता केॅ प्रकट करैत छथि | माटिक चुल्हा पर पवित्र बासन मे बनाओल गेल प्रसाद लऽ खुला आकाश के नीचा ठाढ भऽ सूर्य देव केॅ समर्पित करैत छथि | एहि पूजा के प्रसाद मे प्रायः कोनो एहेन वस्तु केॅ सम्मिलित नहि कएल जाइत अछि जे हमरा सभ केॅ प्रकृति सॅ प्राप्त नहि भेल हो |
छइठ पाबैन के सभ सॅ महत्वपूर्ण पक्ष एकर सादगी, पवित्रता आ लोक पक्ष थीक | भक्ति आ आध्यात्म सॅ परिपूर्ण एहि पाबैन मे बाॅंस सॅ निर्मित सूप, कोनिया, छिट्टा, माटिक बासन, कुसियार, गुड़, चाउर आ गहूम सॅ निर्मित प्रसाद के उपयोग होइत अछि सॅगहि सुमधुर लोकगीत सॅ युक्त भऽ लोक जीवन मे भरपूर मिठास के प्रसार करैत अछि |
ई पूजा शास्त्रीय विधि विधान सॅ पृथक जन सामान्य द्वारा अपन रीति रिवाज मे गढल गेल उपासना पद्धति थीक |एहि पूजा के केन्द्र मे वेद पुराण आदि धर्म ग्रन्थ नहि अपितु ग्रामीण जीवन आ कृषक छथि | एहि पूजाक हेतु ने विशेष धन के आवश्यकता छैक ने पुरोहित के | मूल आवश्यकता होइत छै अडोसी-पडोसी के सहयोगक | नगर, बाट, जलाशय आ घाट के सर-सफाई सामूहिक अभियान के रूप मे संचालित होइत अछि | एहि उत्सव मे खरना सॅ लऽ केॅ अर्घदान धरि समाज के अनिवार्य उपस्थिति बनल रहैत अछि | ई पाबैन सामान्य आ गरीब लोक सभ के दैनिक जीवन के समस्या सभ केॅ बिसरि सेवा-भाव आ भक्ति-भाव सॅ कयल गेल सामूहिक कर्म के विराट आ भब्य प्रदर्शन थीक |
छइठ पूजा चारि दिवसीय उत्सव थीक जकर शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी केॅ आ समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी केॅ होइत अछि | एहि मध्य व्रती लगातार ३६ घण्टा के निर्जल निराहार व्रत रखैत छथि | मूलतः मिथिला, मगध आ भोजपुरा मे ई पाबैन परम्परागत रूप सॅ मनाओल जाइत अछि | वर्तमान समय मे लोक आस्थाक ई महान पाबैन संसारक सभ भाग मे हिन्दू धर्मावलंबी द्वारा मनाओल जाइत अछि | ई पर्यावरण मैत्री पर्व थीक | दीपावली मे गृहस्थ लोकनि घर -आंगन के सफाई करैत छथि त’ छठि मे बाट-घाट, जलाशय के सफाई कऽ पर्यावरण के शुद्ध बनवैत छथि |
शरीर आ मनक कठोर साधना करयवाला एहि पाबैन के पहिल दिन नहाय- खाय होइत अछि | एहि अवसर पर स्नान आ भोजन के अनुशासित विधि केॅ अपनाओल जाइत छैक | आसपास के वातावरण केॅ स्वच्छ बना घर आ भानस के बासन केॅ पवित्र कयल जाइत अछि | शुद्ध, सुपाच्य आ शाकाहारी भोजन कऽ व्रतक शुभारम्भ कयल जाइत अछि |
छठिक दोसर दिन खरनाक नाम सॅ जानल जाइत अछि | एहि दिन व्रती दिन भरि निर्जल उपवास रखैत छथि| सन्ध्या काल साफ-सुथरा बासन मे माटिक चुल्हा पर गुड़ चाउर के खीर आ पुडी बना भगवान सूर्य देव आ माता षष्ठी देवी केॅ अर्पण कऽ प्रसाद स्वयं ग्रहण करैत छथि आ परिवारक सदस्य एवं अन्य श्रद्धालु वीच वितरण करैत छथि | ई प्रसाद ग्रहण पश्चात प्रातः कालीन अर्घदान धरि व्रती निर्जल उपवास करैत छथि |
उत्सव के तेसर दिन अस्ताचलगामी सूर्य देव केॅ अर्घ्य देल जाइत अछि | एहि दिन पवित्रतापूर्वक ठेकुआ आदि पकवान बना ॠतु अनुसार के फल आ पकवान सॅ डाला सजाओल जाइत अछि ओकरा श्रद्धा आ भक्तिपूर्वक माथ पर उठा छइठ पूजा के घाट पर गीत- नादक पहुंचायल जाइत अछि | व्रती जलाशय मे ठाढ भऽ सूर्य देवक अन्तिम किरण के प्रतीक्षा करैत छथि आ ओ सुबेला अयला पर प्रसाद अर्पण करैत अर्घदान कऽ निज-निज गृह केॅ अबैत छथि |
उत्सव के चारिम आ अन्तिम दिन उदीयमान सूर्य केॅ अर्घ्यार्पण हेतु रातुक अन्तिम प्रहर मे पुनः व्रती सपरिवार घाट पर पहुंचि जल मे ठाढ भऽ भगवान भास्कर के प्रथम किरण के प्रतीक्षा करैत छथि | जखन सूर्य देव के प्रथम किरण सॅ सम्पूर्ण संसार आलोकित होइत अछि ओहि बेला मे पुनः डाला मे सज्जित प्रसाद अर्पण करैत अर्घदान कऽ व्रत पूर्ण करैत छथि | एहि तरहें  चारि दिवसीय छइठ उत्सव के समापन करैत सभ केओ अपन घर अबैत छथि आ व्रती पारणा करैत छथि |
छइठ पाबैन के वैज्ञानिक आ ज्योतिषीय दृष्टि सॅ सेहो बहुत महत्व छैक | चैत्र आ कार्तिक मास के शुक्लपक्ष षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर थीक जखन सूर्य पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध मे स्थित रहैत छथि | एहि तिथि मे सूर्य के पराबैंगनी किरण पृथ्वी पर सामान्य सॅ अधिक मात्रा मे एकत्रित होइत अछि, विशेषत: सूर्योदय आ सूर्यास्तक बेला मे | एहि हानिकारक किरण के सीधा असर लोक के आंखि, पेट आ त्वचा पर पडि सकैत अछि | तदर्थ एहि समय मे जल मे ठाढ भऽ सूर्य किरण पर अधिकाधिक जलार्घ्य सॅ एकर प्रभाव केॅ कम कयल जा सकैछ जाहि सॅ व्यक्ति केॅ अधिक नुकसान नहि होइ |
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतं
पूजयस्व विवश्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरं

सम्बन्धित खबरहरु