छैठ , छठ, छठि अथवा षष्ठी नाम भिन्न किन्तु , भाव एके – आस्था आ आत्मिक शुद्धिक प्रतीक । ई पाबैन मिथिला, मगध आ भोजपुर क्षेत्रक लोकजीवन मे हजारों वर्ष सँ रचल-बसल अछि।
एहि पर्वक मूल भावना प्रकृति, सूर्य आ जीवनक प्रति कृतज्ञता, आत्मसंयम, शुद्धता आ सामूहिकता सँ प्रेरित अछि। एहि पर्वक स्वरूप ओना बाह्य रूपेँ पूजा-अर्चना आ व्रत जेकाँ प्रतीत होइत अछि, परंतु एकर भीतर रहस्यमय आध्यात्मिक तत्व, वैज्ञानिक आधार आ सामाजिक एकता केर दर्शन निहित होइत अछि। लोक अपन-अपन मतभेद बिसरि, एकटा साझा भावना सॅं ओत-प्रोत भऽ जाइत अछि।
‘छैठ’ अथवा ‘छठि’ शब्द मूलतः संस्कृतक “षष्ठी” शब्दसँ उत्पन्न भेल अछि। ‘षष्ठी’ अर्थात छठम दिन – एहि शब्दक अपभ्रंश रूपेँ मिथिला आ आसपासक क्षेत्र मे ‘छैठ’ कहल जाइत अछि।
पौराणिक मान्यता अनुसार षष्ठी देवी प्रकृतिक छठम रूप छथि, जे सृष्टिक रक्षण आ प्रजनन के देवी मानल जाइत छथि। भगवान सूर्यक बहिन आ कात्यायन ऋषिक पुत्री माता कात्यायनी जे देवी दुर्गाक रूप छथि केर षष्ठी देवीक रूप मे पूजा कएल जाइत अछि।
‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ आ ‘पद्म पुराण’ मे बालकक दीर्घायु, स्वास्थ्य आ समृद्धिक रक्षा करनिहारि देवीक रूपमे षष्ठी देवीक वर्णन भेटैत अछि जे । एहि कारणेँ छैठक व्रत विशेष रूपेँ मातृशक्ति द्वारा कएल जाइत अछि – कारण ओ परिवारक कल्याणक हेतु समर्पित रहैत छथि।
छैठ मूलतः सूर्य उपासना केर पर्व थीक । हिन्दू धर्म मे सूर्य देवता एकमात्र एहेन देवता छथि जे दृश्यमान रूप मे प्रत्यक्ष दर्शन दैत छथि । वेदकालीन संस्कृत ग्रंथ ‘ऋग्वेद’ मे सूर्यक अनेक स्तुति भेटैत अछि – “सूर्यो अंशुमान् भूत्वा जगत् प्रकाशयति।” अर्थात सूर्य जगतक आत्मा छथि, जे समस्त प्राणी आ पदार्थ मे चेतना भरैत छथि।
छैठ पूजा मे सूर्यक संग उषा (प्रभातक देवी) आ प्रत्युषा (सायंकालक देवी) के संयुक्त आराधना होइत अछि। प्रातः काल सूर्यक पहिल किरण (उषा) आ संध्याकाल सूर्यक अन्तिम किरण (प्रत्युषा) केँ अर्घ्य देल जाइत अछि। ई द्वैत उपासना जीवनक आरम्भ आ अन्त दूनू क्षणक प्रतीक थीक – जकरा मिथिला समाज ‘आदर्श जीवन-चक्र’ के रूप मे मानैत अछि।
छैठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहि अपितु लोकजीवनक उत्सव थीक । एहि पर्व मे न जाति-भेद, न वर्ग-भेद, न लिंग-भेद सब समान रूप सँ सहभागी बनैत छथि।
गामक सब लोक बृद्ध, युवा, बालक, नारी, पुरुष, गरीब आ अमीर सब मिलि अपन-अपन घाट नदी, पोखरि आ नहरक सफाई करैत छथि । माटिक चुल्हा, बाँसक सूप, कोनिया, कुसियार, चाउर, गुड़ आ गहूम सँ बनल प्रसाद एकर सादगीक प्रतीक थीक ।
लोकगीतक मधुर स्वर आ घाटक गूंज एकटा अद्भुद सामूहिक भावना उत्पन्न करैत अछि । मिथिलाक लोकगीत मे व्रतीक भक्ति, ममता, त्याग आ स्नेहक भाव देखल जा सकैत अछि । ई गीत सभ नारीक तपस्या आ मातृत्वक आदर्श केँ उजागर करैत अछि। छैठक व्रत चारि दिन धरि चलैत अछि – नहाय-खाय, खरना, सन्ध्याकालीन अर्घ्य, आ उषाकालीन अर्घ्य ।
पहिल दिन- नहाय-खाय
एहि दिन व्रती स्नान करैत छथि आ घर – आंगन केँ स्वच्छ करैत छथि । माटिक चुल्हा पर शुद्ध शाकाहारी भोजन – प्रायः कद्दू-भात बनाओल जाइत अछि। भोजन पवित्रता सँ ग्रहण कएल जाइत अछि, ई व्रतक शुभारम्भ के संकेत थीक । एहि दिनक उद्देश्य देह आ मनक शुद्धिक संग घरक वातावरण केँ स्वच्छ बनाएब होइत अछि ।
दोसर दिन – खरना
खरना दिन व्रती दिन भरि निर्जल उपवास करैत छथि । सन्ध्याकाल माटिक चुल्हा पर गुड़-चाउर सँ बनल खीर आ पुरी बना’ सूर्यदेव आ माता षष्ठी केँ अर्पित करैत छथि। प्रसादक अंश ग्रहण कऽ ओ पुनः निर्जल रहैत छथि । ई आत्म-संयम आ श्रद्धाक चरम उदाहरण थीक ।
तेसर दिन — सन्ध्याकालीन अर्घ्य
एहि दिन अस्ताचलगामी सूर्यक आराधना होइत अछि। व्रती बाँसक सूप आ डाला मे ठेकुआ, बेल, नारियल, केरा आ ऋतु-फल सभ सजा केॅ घाट पर जाइत छथि। सूर्यक अन्तिम किरण पर जल मे ठाढ भऽ अर्घ्य देल जाइत अछि। एहि बेला लोकगीत, संगीत आ घाटक छटा अतुलनीय होइत अछि। एहि संध्याकालीन अर्घ्य मे सूर्यक अस्तमान होएब सेहो जीवनक विषमता के प्रतीक थीक आ उपासना ओहि अन्धकारक बीच उज्ज्वलक आशा के प्रतिरूप।
चारिम दिन — उषाकालीन अर्घ्य
रातुक अन्तिम प्रहर मे पुनः व्रती घाट पर जा जल मे ठाढ़ भऽ सूर्यदेवक प्रतीक्षा करैत छथि। उदीयमान सूर्यक पहिल किरण देखितहिं अर्घ्य अर्पित करैत छथि। एहि संग व्रतक समापन होइत अछि। घर आबिकेॅ व्रती पारण करैत छथि – गुड़, फल, ठेकुआ, आ प्रसाद सँ ।
छैठ केवल व्यक्तिगत साधना नहि अपितु सामूहिक चेतनाक महापर्व थीक । गामक सभ लोक मिलि सफाई, सजावट, घाट निर्माण, जलाशय शुद्धिकरण आदि मे सहभागी बनैत अछि। एहि कारणेँ छैठक अवसर पर गामक सामाजिक एकता आ सामूहिक कर्मक सर्वोच्च रूप देखल जाइत अछि।
छैठ एहेन पर्व थीक जे गरीबक घर मे सेहो समान श्रद्धा सँ मनाओल जाइत अछि । एहि पूजा हेतु धनक नहि, केवल भक्ति आ शुद्धता केर आवश्यकता रहैत अछि। ई पर्व समाजक सेवा भावना आ पारस्परिक सहयोगक अमर उदाहरण थीक ।
छैठ मुख्यतः नारीक व्रत मानल जाइत अछि। स्त्रीक मनोबल, धैर्य आ आत्मसंयमक एहि सँ श्रेष्ठ उदाहरण दोसर कोनो पर्व नहि। तीन दिन निराहार रहि ठंढा जल मे ठाढ रहब आ परिवार एवं समाजक कल्याणक हेतु प्रार्थना करब – ई केवल धार्मिक कर्म नहि अपितु जीवनक शक्ति आ मातृत्वक महिमा केँ दर्शाबैत अछि।
छैठक व्रत सँ स्त्री अपन अस्तित्व केँ “संरक्षक” आ “संवर्धक” रूपेँ प्रकट करैत छथि। आधुनिक नारीवादक दृष्टि सँ सेहो ई एकटा सशक्तिक प्रतीक थीक । जखन नारी अपन शारीरिक पीड़ा केँ आत्मबल मे परिवर्तित करैत छथि।
छैठक वैज्ञानिक पक्ष अत्यंत रोचक अछि। कार्तिक मासक शुक्लपक्ष षष्ठी तिथि एकटा विशेष खगोलीय स्थिति उत्पन्न करैत अछि – जखन सूर्य दक्षिणी गोलार्ध मे रहैत छथि आ पृथ्वी पर पराबैंगनी किरणक मात्रा अधिक भऽ जाइत अछि। एहि हानिकारक किरणक प्रभाव सँ शरीरक रक्षा हेतु जल मे ठाढ भऽ अर्घ्य देब एक वैज्ञानिक उपाय थीक ।

जलक सतह पर सूर्यक किरण परावर्तित होइत अछि आ एकर सीधा असर सॅं आँखि आ त्वचा केर रक्षा होइत अछि । संगहि, एहि अवसर पर लोक बाट-घाट, नदी आ पोखरि साफ करैत छथि जे सामूहिक पर्यावरण संरक्षण के उत्कृष्ट उदाहरण बनैत अछि। दीपावली मे जहिना गृहस्थ घरक सफाई करैत छथि, तहिना छैठ मे सम्पूर्ण समाज प्रकृतिक स्वच्छता लेल एकजुट होइत छथि।
मिथिला क्षेत्रक लोकगीत, चित्रकला आ हस्तशिल्प पर छैठक गहिर प्रभाव अछि। मधुबनी चित्रशैली मे सूर्य, षष्ठी देवी, घाट, बाँसक सूप, डाला, आ जलक चित्रण विशेष स्थान पाबैत अछि।लोकगीत मे नारीक भावनात्मक जुड़ाव आ आध्यात्मिक समर्पणक स्वर छलकैत अछि –
“छठि मइया घर मे पधारू, सोन चमरिया आसन बिछाय।”
एहि गीत सभ मे श्रद्धा, सौंदर्य आ प्रेमक अद्भुत समन्वय देखल जाइत अछि। मिथिला समाज मे ई महापर्व सांस्कृतिक आत्मगौरवक प्रतीक बनि गेल अछि।
इतिहासकार सभक मत अनुसार छैठ व्रतक परम्परा प्राचीन काल सँ चलि आबि रहल अछि । राजा प्रियव्रत आ मालिनीक कथा प्रसिद्ध अछि – जखन हुनकर संतान नहि भेल, तखन षष्ठी देवीक आराधना कएल गेल, आ हुनका पुत्र प्राप्त भेलन्हि ।
एहि सँ ई परम्परा स्थापन भेल जे छठि मइया संतान आ आयुष्यक रक्षा करैत छथि। रामायण काल मे सेहो छठि व्रतक उल्लेख भेटैत अछि – सीता जीक अयोध्या आगमन के बाद प्रथम छैठ व्रत करबाक उल्लेख किछु लोक परम्परा मे अबधि धरि प्रचलित अछि।
वर्तमान समय मे छैठ केवल मिथिला अथवा बिहारक पर्व नहि रहल अपितु सम्पूर्ण भारत, नेपाल आ विदेश मे रहनिहार प्रवासी हिन्दू समुदायक लोक-पर्व बनि गेल अछि। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता सँ लऽ के काठमांडू, लंदन, दुबई, न्यूयॉर्क, सिडनी धरि घाट बनाइ पूजा होइत अछि। सुर्योपासना आ पर्यावरण प्रेमक एहि अनुपम संगम केँ एखन विश्व स्तर पर लोक “इको-फेस्टिवल” केर रूप मे देखैत अछि।
छैठ मानव जीवनक तीन प्रमुख तत्व — सूर्य (प्रकाश), जल (जीवन), आ पृथ्वी (अस्तित्व) केँ एक सूत्र मे बाँधि दैत अछि। ई व्रत सिखबैत अछि जे आत्म-शुद्धि, संयम, आ भक्ति सँ मनुष्य प्रकृतिक संग एकरूप भऽ सकैत अछि। ई केवल पूजा नहि आत्मानुशासन आ जीवन दर्शनक पर्व थीक ।
सूर्य अस्त होए तखनो श्रद्धा अडिग रहैत अछि आ जखन पुनः उदय होइत अछि तखन नव आशा जन्म लैत अछि । एहि मे जीवनक सम्पूर्ण दर्शन निहित अछि।
छैठ पाबैन लोकआस्था, श्रद्धा आ सामाजिक समरसताक अनुपम संगम थीक । ई मिथिला आ सनातन संस्कृति केँ विश्व स्तर पर पहचान दैत अछि। छैठ मे न धनक अभिमान, न शक्ति प्रदर्शन – केवल भक्ति, शुद्धता आ सादगीक महिमा अछि। एहि चारि दिनक साधना मानवीय जीवनक चारि आयाम – शरीर, मन, समाज आ प्रकृति सभक शुद्धिक प्रतीक थीक । तदर्थ छैठ एक पर्व मात्र नहि अपितु जीवन दर्शनक प्रत्यक्ष स्वरूप थीक ।
सूर्य देवक रश्मि मे जे प्रकाशित
ओहि मे छिपल अछि जीवनक सार ।
छैठ सिखबैत अछि भक्ति सँ शुद्धि
आ शुद्धि सँ आत्म साक्षात्कार ।।