मिथिलांचल अपन लोकसंस्कार, पर्व-त्योहार आ सामाजिक परंपरा लेल सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप मे विशिष्ट स्थान रखैत अछि।
एहि संस्कारसभ मे कोजागरा एहेन पर्व थीक जे नवविवाहित वर केॅ मान-सम्मान, वधू-पक्षक दायित्व आ समस्त समाजक सहभागिता के संग एक अपूर्व लोक-आध्यात्मिक उत्सव के रूप मे मनाओल जाइत अछि। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्षक अंतिम दिन अर्थात पूर्णिमा के राति जखन चन्द्रमा अपन सम्पूर्ण सौन्दर्य मे उदित होइत छथि—ओही शुभ संध्या पर मिथिलाक कोना-कोना मे कोजागरा के उल्लास पसरैत अछि।
एहि रातुक विशेषता केवल खगोलीय वा धार्मिकता धरि सीमित नहि अछि बल्कि ई पर्व सांस्कृतिक, सामाजिक आ पारिवारिक जीवन केॅ गहीर स्तर पर जोड़बाक आधार बनैत अछि। एहि पर्व के नाम संस्कृत शब्द “को जागर्ति ?” अर्थात के जागल अछि? पर आधारित अछि ।
मान्यता अनुसार, आश्विन शुक्ल पूर्णिमा के रात्रि मे माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करैत छथि आ ओहि गृह मे प्रवेश करैत छथि, जतय लोक जागल रहैत अछि। स्वच्छता, श्रद्धा आ भक्ति सॅं ओहि देवी के स्वागत करैत अछि। शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागरा केवल एक धार्मिक पर्व नहि, अपितु प्राकृतिक आ खगोलीय नियम के अनुसार एकटा वैज्ञानिक पर्व सेहो थीक ।
एहि राति के चन्द्रमा मे अद्वितीय सुंदरता मात्र नहि, बल्कि ओकर उपचारात्मक गुण के सेहो अनुभव करबाक अवसर दैत अछि। एकर परंपरा मे छुपल ज्ञान आ अनुभव वैज्ञानिक सोच सॅं जुड़ैत अछि जे अपन परंपरा केॅ वैज्ञानिक आधार पर देखबाक अवसर प्रदान करैत अछि। शरद पूर्णिमा के राति चन्द्रमा पृथ्वी सँ बहुत नीकट होइत अछि।
चन्द्रमा अपन पूर्णता पर रहि अधिक उज्ज्वल देखइबाक कारण ई राति “Supermoon” जेकाँ प्रतीत होइत अछि। शरद ऋतु के समय वर्षा समाप्त भऽ जाइत अछि, आ आकाश बहुत साफ रहैत छैक। एहि समय मे तारामंडल, चन्द्रमा आ अन्य खगोलीय पिंड सभ साफ-साफ देखल जा सकैत अछि। दिन छोट होइत जाइत अछि आ राति नम्हर — चन्द्रमा अधिक समय तक आकाश में रहैत अछि। तापमान मे गिरावट शुरू भऽ जाइत छैक, जे चन्द्रप्रकाश के ठंढा प्रभाव के महसूस करबैत अछि।
वैज्ञानिक रूप सँ चन्द्रमा के रोशनी मे अल्ट्रावायलेट (UV) किरण होइत अछि। आयुर्वेद अनुसार ई किरण शरीर पर शीतल, रोगनाशक आ मानसिक शांति देबाक असर करैत अछि। शरद पूर्णिमा के परंपरा अनुसार खीर बना केॅ चन्द्रमा के रोशनी मे खुला आकाश तर राखल जाइत अछि।
वैज्ञानिक दृष्टि सॅं चन्द्रमा के किरण दूध मे मौजूद लैक्टोज पर हल्का असर करैत अछि, जकर कारण खीर सुपाच्य भऽ जाइत अछि । संगहि, दूध में विद्यमान विटामिन D पर चन्द्रमा के UV किरण सक्रियता बढबैत अछि। पूर्ण चन्द्र के मानसिक स्थिति पर आंशिक प्रभाव रहैत अछि — नींद, मूड आ एकाग्रता पर । ई राति ध्यान, योग, आ शांति हेतु उत्तम मानल जाइत अछि।
कोजागरा के धार्मिक स्वरूप अत्यन्त समृद्ध अछि । एहि राति माता लक्ष्मी के विशेष पूजन कएल जाइत अछि। जनविश्वास अनुसार ई राति धन-धान्य आ समृद्धिक आराधना लेल सर्वोत्तम मानल जाइत अछि। पूजाक विधि मे सिन्दुर, चंदन, दूबि, अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य आ विशेष रूप सॅं मखान के अर्पण महत्वपूर्ण मानल जाइत अछि।
लक्ष्मीजीक पूजा सॅं पहिने भगवान विष्णु के आह्वान सेहो कएल जाइत अछि कारण लक्ष्मीजी हुनक संगिनीक रूप मे पूज्या छथि। दीप के टिमटिमाहट आ धूपक सुरभि वातावरण मे आध्यात्मिक चेतनाक संचार करैत अछि। परिवारक सभ सदस्य एक संग बैसि लक्ष्मी पूजन करैत छथि—मंत्रोच्चार सॅं वातावरण पवित्र भऽ जाइत अछि।
एहि राति जागरण के विशेष महत्व अछि।
लोक विश्वास अछि – राति भरि जागिकेॅ जे माता के स्तुति करैत छथि हुनकर घर धन-सम्पदा सॅं भरि जाइत अछि। शरद चन्द्र के किरण सॅं स्नापित खीर, मखान आ फल-नैवेद्य ग्रहण करब विशेष फलदायक मानल जाइत अछि। बच्चा, वृद्ध, युवा—सभ गोटे एक संग बैसि पूजा करैत छथि आ प्रसाद ग्रहण करैत छथि ।
मिथिला मे ई पर्व एक विशिष्ट रूप धारण कएने अछि, विशेष रूप सॅं विवाहोपरान्त पहिल कोजागरा पर वर के सासुर सॅं भार अर्थात स्नेहपूर्ण भेंट पठाओल जाइत अछि। एहि भार मे पान, मखान, मिठाई, फल, वस्त्र इत्यादि शामिल रहैत छैक । पान, मखान आ मिठाई समाज मे उल्लासपूर्वक बांटि दाम्पत्य जीवन के शुरुआत कएल जाइत अछि ।
एहि पर्व के संग एक विशेष आत्मीयता जुड़ल रहैत छै । नवविवाहित वरक सासुर सॅं आएल उपहार केवल भौतिक वस्तु नहि होइत अछि, बल्कि ओ एक प्रकारक “स्नेह-संदेश” होइत अछि, जतय प्रत्येक वस्तु मे अपनत्व, आशीर्वाद आ सम्बन्धक मिठास भरल रहैत छै। एहि उपहार मे सासुर पक्षक लोक के भावना समाहित रहैत छै ।
गाम-घर मे एहि दिनक विशेष महत्त्व रहैत अछि।
स्त्रीसभ सबेरे सॅं तैयार भऽ जाइत छथि—घरक आँगन बहाड़ल जाइत अछि, गोबर सॅं नीपि रंग-बिरंग फूल-पातक संग अरिपन बनाओल जाइत अछि। पीठार आ सिन्दुर सॅं सिंगारल आँगन ओहि दिव्य भावनाक अभिव्यक्ति थीक, जे मिथिला संस्कृति के मूल आधार अछि।
एहि रातिक एक अद्भुत पक्ष थीक—लोकगीत आ पारंपरिक गीति-संवाद । ई गीत मनोरंजन मात्र नहि, बल्कि सांस्कृतिक चेतना के जागृत करैत अछि। एहि संम्वाद सभ मे संकेत रहैत अछि जे लक्ष्मी तऽ ओहि घर अबैत छथि जतय लोक जागल रहैत अछि।
एकर गूढ़ अर्थ ई जे जकर मन जागल छै, जे सजग अछि, जे शुद्ध अछि—ओही ठाम देवीक वास होइत अछि।मैथिल समाज मे कोजागरा, विशेष रूप सॅं स्त्रीसभक सृजनात्मकता, धार्मिकता आ पारिवारिक जिम्मेदारीक प्रतीक बनि गेल अछि।
ई पर्वोत्सव एकटा सामाजिक पुनर्मिलन जेकाँ होइत अछि जकरा नवविवाहित वर-वधूक सामाजिक मान्यता के संकेतक रूप मे सेहो देखल जाइत अछि। वरक चुमाओन—जे परंपरागत ढंग सॅं एक सम्मान-समारोह थीक — नव सम्बन्ध केॅ सार्वजनिक स्वीकार्यता प्रदान करैत अछि। गुरुजन द्वारा वर केॅ दूर्बाक्षत सॅं आशीष देल जाइत अछि। संपूर्ण गाम मे हकार पड़ैत अछि—अर्थात शुभ समाचारक सूचना।
हकार एक प्रकारक सामाजिक आमंत्रण थीक जे भोजन आ प्रसाद वितरणक संग सम्पूर्ण समाज के सहभागी बनबैत अछि। एही माध्यम सॅं गामक सुदृढ़ सामाजिक संरचना, सहभागिता आ समरसता के उदाहरण प्रस्तुत होइत अछि।
कोजागरा मे भार पठेनाई एकटा आर्थिक अभिव्यक्ति सेहो थिक। जाहि माध्यम सॅं वधूपक्ष अपन दायित्व निर्वहण करैत छथि, संगहि वरक सम्मानक उद्घोष करैत छथि। एहि प्रकार सॅं पारिवारिक सम्बन्ध मे पारदर्शिता, अपनत्व आ उत्तरदायित्वक भावना विकसित होइत अछि।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि सॅं नवविवाहित वर आ वधू लेल ई अवसर नव सामाजिक पहचान स्थापित करबाक होइत अछि। विवाह उपरान्त जीवनक आरंभिक चरण मे कोजगरा जेहेन संस्कार नव दम्पती केॅ गहीर मानसिक बल प्रदान करैत अछि।
आधुनिक युग मे जखन लोक जीवन तकनीकी आ भागदौड़ सॅं भरल अछि, तखन कोजागरा सन के लोकपर्व सामाजिक संतुलन आ आत्मीयता केॅ पुनर्स्थापित करबाक सशक्त माध्यम बनल अछि।यद्यपि किछु ठाम एहि पर्व मे दिखावा आ प्रतिस्पर्धा के प्रवृत्ति देखल जाइत अछि तथापि मूल भावना—भक्ति, सम्मान, समर्पण आ आत्मीयता ओकरा जीवन्त बनौने अछि। मिथिलाक नव पीढ़ी लेल ई पर्व अपन जड़िकेँ स्मरण करबाक अवसर प्रदान करैत अछि।
कोजागरा केवल तिथि विशेष पर मनाओल जाएवला एक पर्व मात्र नहि अपितु मिथिला के सांस्कृतिक चेतना, धार्मिक श्रद्धा, पारिवारिक भावना आ सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रत्यक्ष स्वरूप थीक । ई पर्व मिथिलावासी लेल ओ स्तम्भ थीक जाहि पर अपन गौरवशाली अतीत, संस्कार आ संवेदनशील समाज टिकल अछि।
कोजागरा के उत्साह केवल चन्द्र-प्रभा के आलोक नहि अपितु मिथिला के लोक-मन, लोक-भाषा आ लोक-धर्मक आलोक थीक जे अनादि काल सॅं अपन परंपरा केॅ सजाओने आबि रहल अछि।