झीझीया मिथिलांचल केर एक पारंपरिक लोकनृत्य थीक, जे मुख्य रूप सॅं दशहरा के अवसर पर शक्ति स्वरूपा माॅं दुर्गा आ काली माता के आराधना हेतु किशोरी कन्या सभ द्वारा नृत्य-गीतक रूप मे प्रस्तुत कएल जाइत अछि।
ई नाच सामूहिक रूप मे गाम-घरक लोकसभके सहभागिता सॅं सम्पन्न होइत अछि।
झीझीया शब्द के अर्थ:
“झीझीया” शब्द झीं-झीं ध्वनि सॅं बनल मानल जाइत अछि, जे घैला में छेद कएलाक बाद ओहि मे जरैत दीपक के कारण निकलैत अछि। ई घैला प्रतीकात्मक रूप सॅं माता दुर्गा वा अन्य देवी-देवता के पूजा लेल उपयोग होइत अछि।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
झीझीया नाच मिथिलांचल के एक प्राचीन लोकनृत्य थीक जे मुख्य रूप सॅं धार्मिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक परिपेक्ष्य मे विकसित भेल अछि। एकर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पुरान मिथक आ जनविश्वास सॅं जुड़ल अछि। पौराणिक कथा पर आधारित
पौराणिक कथा पर आधारित अहि नाच के उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक प्रसिद्ध लोककथा प्रचलित अछि :
प्राचीन काल मे एक राजा छलाह जिनकर रानी केॅ संतान नहि होइत छलनि। एहि कारण रानी बहुत दुखी रहैत छलीह। अंततः देवी माँ के कृपा सॅं तांत्रिक साधना द्वारा एकटा पुत्ररत्न के प्राप्ति भेलन्हि। किन्तु, ओहि साधना के शर्त ई छलै जे यदि संतान भऽ जाइत अछि त’ ओकरा दुष्ट- दृष्टि सॅं बचा केॅ रखबा लेल जलदेव केॅ समर्पित करए पड़त।
जखन पुत्र के जन्म भेल तऽ जलदेवता ओकरा लेबए लेल आबि गेलाह। रानी एहि तथ्य सॅं अवगत छलीह जे ई बच्चा जलदेवता के अधिकार मे अछि। किन्तु, वात्सल्य प्रेम के वशीभूत ओ माता अपन पुत्र केॅ ने जलदेव केॅ समर्पित करए लेल तैयार छलीह आ’ ने कुनु दुष्ट- दृष्टि के प्रभाव सॅं ओहि बालक के कुनु प्रकारक क्षति केॅ स्वीकार कऽ सकैत छलीह।
एहि विषम परिस्थिति सॅं उन्मुक्ति हेतु शारदीय नवरात्रा के पवित्र वेला मे माँ दुर्गा के शरणागत भऽ रानी अपन पुत्र के रक्षार्थ प्रार्थना करए लगलीह । एहि आराधना मे ओ सछिद्र माटिक घैला मे दुष्ट- दृष्टि के प्रवेश रोकबाक उद्देश्य सॅं काॅंच के टुकड़ाक रक्षा कवच बनोलन्हि।
बीच मे बालक के आत्मा रूपी प्रज्ज्वलित दीप केॅ राखि आओर सुरक्षा सुनिश्चित करबाक हेतु अपन माथ पर उठा केॅ भक्ति, समर्पण आ नृत्य- गीतादि सॅं माँ दुर्गा केॅ प्रसन्न कऽ अपन पुत्र के रक्षा कयलीह।
ताहि परंपरा के आधार पर स्त्रीगण छेदयुक्त घैला जकरा झीझीया कहल जाइत छैक मे काॅंच के टुकड़ा राखि बीच मे दीप जरा केॅ देवी सॅं अपन संतान के रक्षा लेल प्रार्थना करए लगलीह । ई परंपरा धीरे-धीरे एकटा धार्मिक लोकनृत्य के रूप मे परिणित भऽ गेल जकरा “झीझीया नाच” कहल जाइत अछि ।
2. सामाजिक पक्ष : उपरोक्त धार्मिक मान्यता के अतिरिक्त झीझीया नाच केॅ अत्यधिक लोकप्रिय बनेबाक पाछू सामाजिक विज्ञान के महत्वपूर्ण भूमिका अछि जकरा निम्नानुसार बूझि सकैत छी :
कृषि संस्कृति सॅं सम्बन्ध : झीझीया नाच खास कऽ केॅ वर्षा ऋतु अन्त भेला पर, खेत मे अन्नक बालि लगेलाक बाद होइत अछि। जन- विश्वास अनुसार एहि नाच सॅं जलदेवता प्रसन्न होइत छथि आ प्राकृतिक आपदा सॅं फसल के रक्षा होइत अछि ।
महिला केन्द्रित परम्परा : एहि नाच मे मुख्य भूमिका स्त्रीगण के होइत अछि। विशेषत: किशोरी आ नवयुवती सभ द्वारा सामूहिक रूप सॅं नृत्य कएल जाइत अछि। ई नृत्य महिला सशक्तिकरण आ सामूहिक चेतना के प्रतीक बनि गेल अछि।
समाज के एकता के प्रतीक : ई नाच गाम-समाज मे मेल-जोल, सहयोग आ सांस्कृतिक एकता के भावना जागृत करैत अछि। एक संग नाच-गान आ पूजा-पाठ समाज मे सद्भावना के पोषण करैत अछि।
सामुदायिक सहभागिता : झीझीया नाच सभ समुदायके कन्या सभ द्वारा सामूहिक रूप सॅं सम्पादन कएल जाइत अछि। एहि माध्यम सॅं समाज मे सामूहिकता, सहकार्य एवं एकता के भावना पनपैत अछि।
नारी सशक्तिकरण : झीझीया नारी-शक्ति के महत्व आ भूमिका केॅ स्पष्ट करैत अछि। ई नाच नारी- शक्ति द्वारा नारी-शक्ति केॅ समर्पित अछि।
लोकजीवन सॅं जुड़ाव : ई नाच गामक लोक जीवन सॅं जुड़ल एक खास विधा छी जे गामक लोकसंस्कृति केँ जिवंत रखबा मे सहायक सिद्ध भेल अछि।
3. मनोरंजनात्मक पक्ष : झीझीया नाच केवल धार्मिक विश्वास आ परम्परा धरि सीमित नहि अपितु ई मैथिल समाज के मनोरंजन, एकता आ सांस्कृतिक गौरव के एकटा अद्भुत प्रतीक बनि गेल अछि। एहि नाच मे जे आनन्द, उत्साह आ सहभागिता देखल जाइत अछि से एकर मनोरंजनात्मक पक्ष के अत्यन्त महत्वपूर्ण बना दैत अछि।
लोक आनंद के साधन : ई नाच गाम-समाज के लेल एकटा विशेष आनन्द के अवसर होइत अछि। युवती सभ राति-राति भरि सौंसे गाम घूमि केॅ झीझीया नाच करैत छथि। गामक लोक सभ उत्साह सॅं एकठाम जमा भऽ एहि नृत्य के आनन्द उठबैत छथि। सभ केओ श्रद्धा आ भक्ति सॅं नाच-गान मे मग्न होइत छथि, जाहि सँ पूरा गाम मे उत्सव के माहौल बनि जाइत अछि।
संगीत आ नृत्य के संगम : झीझीया नाच मे पारंपरिक लोक गीत गायल जाइत अछि जे मिथिलांचल के सांगीतिक विरासत के उजागर करैत अछि। संगहि, सामूहिक नृत्य के माध्यम सॅं युवा पीढ़ी अपन कला आ अभिव्यक्ति के विकास करैत छथि।
नाटकीयता आ आकर्षण : माथ पर काँच स भरल घैला मे जरि रहल दीया के संग नाचक दृश्य देखबा मे बहुत सोहनगर होइत अछि। अन्हार राति मे झीझीया सॅं निकलैत रोशनी आ ओकर लयबद्ध गति दर्शक केॅ मोहित कऽ दैत अछि।
सामूहिक सहभागिता : ई नाच कुनु जाति, समुदाय, लिंग वा उम्र विशेष धरि सीमित नहि रहैत अछि अपितु ई सम्पूर्ण गामक सहभागिता सॅं सम्पन्न होइत अछि। पुरुष, महिला, बच्चा, बृद्ध सबके लेल ई नाच विशिष्ट सामाजिक मनोरंजन होइत अछि।
रचनात्मकता के विकास : झीझीया बनाबय मे सेहो नव-नव डिजाइन आ सजावट के प्रयोग होइत अछि। युवती सभ अपन हाथ सॅं झीझीया सजबैत छथि जे हुनकर सभके रचनात्मकताक झलक दैत अछि।
4. सांस्कृतिक पक्ष : मनोरंजनक संगहि झीझीया मिथिलाक प्राचीन आ परम्परागत सांस्कृतिक समृद्धता के द्योतक थीक। लोकगीत आ नृत्यक समन्वय : झीझीया नाच मे मिथिला के लोकधुन, मृदंग, झांझ, घुंघुरू आदिक प्रयोग होइत अछि। कन्यासभ सामूहिक रूप सॅं गीतक बोल आ आ संगीतक ताल अनुसार नाच करैत छथि। जे मिथिला केर समृद्ध सांगीतिक परंपरा केँ उजागर करैत अछि।
परंपरागत पोशाक : नाच करयवाली कन्यासभ पारंपरिक वेशभूषा यथा रंग-बिरंगक कपड़ा, श्रृंगार प्रसाधन आ गर- गहना सॅं सुसज्जित भऽ मिथिला के समृद्ध शिल्पकला सॅं परिचय करबैत माथ पर झीझीया राखि नृत्य करैत अछि।
लोक कलाक जीवंतता : ई नाच लोककला केँ जिवंत राखए के माध्यम थीक विशेषत: लोकनृत्य, लोकसंगीत आ पारंपरिक वेशभूषा केँ ।
5. धार्मिक पक्ष : यद्यपि एहि लोकनृत्य के अन्तर्निहित भावना बहुआयामी छैक तथापि एकर मूल उद्देश्य धार्मिक अछि।
देवी आराधना : ई नाच विशेष अवसर पर पर दुर्गा माता अथवा काली माता के आराधना हेतु होइत अछि। एहि नाच मे कन्यासभ देवी सॅं सुरक्षा, समृद्धि आ सुस्वास्थ्य के कामना करैत छथि।
पवित्रता आ संयम : झीझीया नाच करयवाली केँ विशेष संयम राखय पड़ैत छैक – जेना उपवास, सात्विक भोजन, पूजा-पाठ आदि । ई धार्मिक अनुशासन केँ दर्शाबैत अछि ।
6. वैज्ञानिक पक्ष : मिथिला के प्रत्येक धार्मिक आ सांस्कृतिक परंपरा मे विशिष्ट विज्ञान सन्निहित होइत अछि, झीझीया एकर एकटा प्रमाण थीक।
ऑक्सीजन के प्रवाह : दीपक के जरैत रहबाक लेल ऑक्सीजन चाही। झीझीया के छिद्र सॅं घैला के अंदर हवा के आवागमन होइत रहैत छै, जाहि सॅं दीप के जरैत रहैत छै।
ताप आ धुआँ के निकास : दीपक जरैत काल ताप धुआँ उत्पन्न करैत छै। झीझीया के छिद्र सँ ताप आ धुआँ बाहर निकलि जाइत अछि जे घैला के फूटए सँ बचबैत छै आ दीप केॅ प्रज्ज्वलित राखैत अछि ।
रोशनी के प्रसार : झीझीया के छिद्र सँ दीप के रोशनी बाहर अबैत अछि जे नाच-गान में सौंदर्य बढ़बैत छै। ई प्रक्रिया छाया आ प्रकाश के आकर्षक खेल बनबैत छै।
शारीरिक व्यायाम : नाच करब एक प्रकार के शारीरिक व्यायाम थीक। एहि नाच सॅं शरीर चुस्त-दुरुस्त रहैत अछि आ रोग- प्रतिरोधक क्षमता बढ़ैत छैक ।
सामूहिक ध्वनि प्रभाव : सामूहिक गीत गाबय आ ताल पर ताल मिला नाच करय सॅं मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ैत छैक जे मानसिक तनाव केँ दूर करैत अछि।
झीझीया के थर्मल साइंस : जखन दीप जरैत छै तऽ माटिक घैला धीरे-धीरे गर्म होइत छै जाहि सॅं एक तरहक थर्मल एनर्जी उत्पन्न होइत अछि। ई प्राकृतिक विज्ञान के छोट उदाहरण थीक।
7. दार्शनिक पक्ष : ई नाच मिथिला के लोकदर्शनक साक्षात् अभिव्यक्ति थीक — जतए भक्ति, ज्ञान आ कर्म एक संग चलैत अछि।
जीवन आ प्रकृति सॅं जुड़ावक प्रतीक : झीझीया नाच जीवन आ प्रकृति के बीच एक गूढ़ समन्वय केॅ स्थापित करैत अछि। घैलामे दीप जरब अंधकारमे प्रकाशक स्थापना के प्रतीक थीक तहिना कन्याके नाच निर्मल चेतना के गतिशीलताक प्रतीक।
रातुक अन्हारमे नृत्य : अन्हार कतबो घनघोर रहए यदि हृदय मे विश्वासके दीप जरय तऽ पथ निश्चित बनैत अछि।
आत्मा आ शरीर के प्रतीकात्मकता : ई नाच कहैत अछि जे शरीर (माटिक घैला) भले नश्वर हो, मुदा जाधरि आत्मा (दीप ज्योति) भीतर जरि रहल अछि ताधरि जीवन सार्थक अछि।
झीझीया नाच मिथिला संस्कृति के अद्भुत लोकधरोहर थीक। एहि नाच मे धार्मिक आस्था, सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक विविधता एवं वैज्ञानिक आ दार्शनिक चेतना एक संग मिश्रित अछि।
ई परंपरा केवल मनोरंजन नहि अपितु जीवनक मूलभूत शिक्षा, अनुशासन आ श्रद्धा केँ पोषित करैत अछि ।