काठमाण्डू, २४ कातिकः एहि वर्षक महापर्व छैठ शुक्रदिन सम्पन्न भेल अइछ । ‘नहाए–खाए’ सङे अइ सालक मङ्गलदिन ई पर्व सुरु भेल छल ।
बुधदिन साँझ खरनासङे परिवारक मुख्य महिला तथा अन्य श्रद्धालुसभ व्रतक सङे पूजा करबाक प्रण केने रहैथ आ बृहस्पतिदिन सूर्यकेँ सन्ध्याकालीन तथा शुक्र क प्रातःकालीन अर्घ देल गेल रहए । तकरबाद पारनक सङ ई पर्व बिसर्जन कएल गेल ।
अइबेर मात्र नै सबबेर एहिना कएल जाइ छै । अइ अर्थमे कहबै त ई पावैन चाइर दिनक छी । चाइर दिनधैर बहुत उत्साह तथा उमङ्गसँ ई पर्व मनाएल जाइ छै। एखन किछ समयसँ छैठ राष्ट्रिय मात्र नै, अन्तर्राष्ट्रिय स्तरपर मनाएल जाए लगलैए । हाल ई महापर्व विश्वमे जत कतौ मैथिली आ भोजपुरी भाषी छैथ, ओत मनाएल जाइ छै । मूलतः सूर्योपासनासँ सम्बन्धित ई पावैन प्रकृति पूजनसँ सम्बद्धित अइछ ।
ई पावैनक माध्यमसँ प्रकृति जे जीवनदायिनी छियै, जीवन सञ्चालक छियै, प्रति आभार व्यक्त कएल जाइ छै। एतेक मात्र नै सूर्य, जकरा प्रत्यक्ष जाग्रत देवताक रुपमे स्वीकार कएल जाइत छैन, हुनक अनुपस्थितिमे अइ जगतकेँ सञ्चालन असम्भव अइछ, हुनकाप्रति मानवद्वारा अनुग्रह भाव प्रदर्शित करैत आभार व्यक्त करबाक पावैन छी छैठ ।
सूर्यके उपासनाक सन्दर्भ त विश्वक बहुतेक देश आ बहुत संस्कृतिमे भेटैत अइछ मुदा सूर्य पत्नी उषा आ सन्ध्या अर्थात् डुबैत आ उगैत दुनु सूर्यकेँ उपासना होबएबला सांस्कृतिक पावैन सम्भवतः छैठ मात्र छी ।
एहनमे सुन्दर भविष्यके अपेक्षासहित उगैत सूर्यकेँ शक्तिके उपासना मात्र नै, बरु विगतके शक्ति जकर कारणसँ ई सृष्टि आ सभ्यता अस्तित्वमे अइछ, आजुक अवस्थाधैर आइब गेल अइछ, तकरोप्रति अर्थात् डुबैत शक्तिप्रति अर्थात विगतके पुर्खाप्रति सेहो आदर सत्कारके भाव प्रकट करबाक पावैन छी ई ।
ई पावैनके केन्द्रीय पूजनीय तत्व सूर्य छी । सूर्यकेँ शक्ति मानल जाइ छै। अइ आधारमे ई पावैन शक्तिके पावैन सेहो छी । सूर्य ऊर्जाक केन्द्र छी । अहि उर्जासँ प्रकृति—सृष्टि सञ्चालित अइछ । ऊर्जाके अनुपस्थितिमे जीवन सञ्चालन नै भ सकैत छै । अइ आधारमे सूर्यप्रति अनुग्रहित होबएबला पावैनक रुपमे छैठ पावैनके महत्व अइछ ।
सूक्ष्म ढङ्गसँ विश्लेषण कएल जाए त ई पावैन वैज्ञानिक मान्यतापर आधारित रहल पाओल जा सकैत अइछ । ई पावैन मनेबाक प्रक्रियामे आ अपनाएल जाएबला विधिसभ विज्ञानसम्मत देखाइत अइछ । आध्यात्म एहन पक्ष छी जे पराशक्तिप्रति सम्मान, समर्पण आ आस्थाके जोडैत अइछ ।
श्रद्धा तथा विश्वासक नाममे कताै ने कताै भय आ त्रासक उपस्थिति रहै छै जे समाजमे बिबिध मान्यतासभ अपनेबाक लेल बाध्य करैत छै । छैठ पावैनके विश्लेषण कएल जाए त आध्यात्मक आवरणमे रहल भय आ त्राश विज्ञान आधारित स्थापित मान्यतासभके अनुशरण करबालेल समाजकेँ बाध्य बनाैने अइछ अथवा कहिक प्रेरित केने अइछ ।
एहने एकटा विज्ञान आधारित सन्दर्भ छी, डुबैत आ उगैत सूर्यके उपासना । विज्ञान प्रमाणित केने अइछ जे, सूर्यसँ उगैत आ डुबेत समयमे प्रसारित होबएबला किरण जीवनलेल बहुतेक उपयोगी अइछ । ई किरणके अभावमे जीवन सभ्यताके निरन्तरता सम्भव नै अइछ ।
छैठ पावैनकेँ एहन अनेक वैज्ञानिक अवधारणासँ जोइड़ सकैत छी । दोसर पक्ष अइछ जल संरक्षण आ स्वच्छता । एखन विश्व जलवायु परिवर्तनक कारण सिर्जना भेल आ होबएबला सम्भावनाक असरसँ आक्रान्त अइछ । जलवायु परिवर्तनक न्यूनीकरणके अनेक उपाय खोइज रहल अइछ, वर्तमान विश्व ।
अइबारे विश्वकेँ सचेत बनेबाक उद्देश्यसँ बहित बेसी जनधनके लगानीमे वार्षिकरूपेँ विश्व सम्मेलन भेल करैत अइछ। ई वर्ष सेहो छैठके लगले अजरवैजानके बाकुमे एहने सम्मेलनके आयोजना भ रहल अइछ।
छैठक प्रवर्तकसभ मानव समाज आ सभ्यता बचेबाक लेल हजारौँ वर्ष पहिनेसँ (छैठ पावैन कहियासँ अस्तित्वमे आएल छै ? यकिन नै अइछ) जलवायु परिवर्तनके सम्भाव्य अवस्था आ तकर असरबारे सचेतना देखएलैथ । जल आ जलाधारके संरक्षण करबाक आ प्रकृति बचेबाक वैज्ञानिक आवश्यकताबारे पूर्वज तहिये चिन्ता आ जागरूकता प्रकट केलैथ । ओसभ मानव सभ्यताक पक्षमे आध्यात्मिक आस्था तथा विश्वासकेँ माध्यमकरुपमे प्रयोग केलैथ ।
ई पावैन कहियासँ मनेबाक क्रम शुरु भेल तकर यकिन एखनो नै भ सकल अइछ । मुदा ई पावैनके उपासना विधिके विश्लेषण करैत गेलापर ई निस्चित बुझाइत छै जे ई पावैन मूलतः प्रकृति पूजनसँ सम्बन्धित अइछ । ई पावैन जलाशय, नदी, पोखैर, ताल तलैया लगायतक जलस्रोत क्षेत्रमे उपस्थित भ सूर्यके उपासना क मनाबैत छैथ । पावैन मनेबाक क्रममे जलस्रोत आ सम्बन्धित क्षेत्रक शुद्धता आ सफाइमे विशेष ध्यान देल जाइत छै । ई शुद्धता आ सफाइक काज जल, जे जीवनदायिनी छी , तकर संरक्षणक लेल अत्यन्त जरूरी अइछ ।
अइ पावैनमे प्रसादक रूपमे अर्पण कएल जाएबला वस्तुसभ प्रकृतिमे आधारित रहैत अइछ । केरा, उइख, गाछी सहितके हरदी आ तखन उपलब्ध अन्य कृषि—खाद्य सामग्री तकर उदाहरण अइछ । अइसँ ई मानल जा सकैए जे छैठ प्रकृतिके सम्मान करबाक पाठ सिखाबैत अइछ ।
मूलतः नेपालक मध्य तथा पूर्वी तराई—मधेशमे उत्साह आ श्रद्धापूर्वक मनाएल जाएबला महापर्व छैठ उगैत आ डुबैत सूर्यके उपासना क मनाएल जाइ छै । अइ पावैनमे डुबैत सूर्य विगतके स्मरण करैत आत्ममूल्याङ्कन कएल जाइत छै त उगैत सूर्य सुन्दर आ स्वस्थ्य भविष्यके निर्माण करबालेल अभिप्रेरित करबाक विश्वास कएल जाइत अइछ ।
ई पावैन स्वास्थ्य, निरोगिता, सन्तानप्राप्ति आ परिवारक कल्याण तथा उन्नति आ रक्षाक लेल श्रद्धापूर्वक मनाएल जाइत अइछ । निश्कर्षमे कहि त वैज्ञानिक दृष्टिसँ ई पावैनके महत्वकेँ एना उल्लेख क सकैत छी ।
– ई पर्व शुद्धता आ स्वच्छताक महत्वपर जोर दैत अइछ, जे स्वास्थ्य आ कल्याणक लेल आवश्यक अइछ।
– ई पावैन पर्यावरणके सन्तुलन आ संरक्षणके सन्देश सेहो देने अइछ, जे प्राणीजगतके लेल आवश्यक अइछ । प्रकृतिप्रति आदर भावके उद्देश्य पर्यावरणके संरक्षणक सन्दर्भमे जनचेतना जागृत करब अइछ।
– प्रकृति सबके छी । ई सामूहिक सम्पदा छी । एकर उपयोग सब कियो करए सकैत छी आ कोनो आधारमे केकरो प्रकृतिके सदुपयोगसँ वञ्चित नै करबाक चाही,से सन्देश सेहो अइ पावैनके छी ।
– जल, जीवन छी से महत्वपूर्ण सन्देश ई पावैन देने अइछ ।
– भोर आ साझँक सूर्यक किरण मानव स्वास्थ्यकलेल उपयुक्त होइत छै से सन्देश एहि पावैनमे निहीत अइछ ।
सूर्य आ प्रकृति जेना केकरोसँ भेदभाव नै करै छै । तहिना छैठ पावैन सेहो केकरोसङ भेदभाव नै करै छै । पूजा आ उपासनामे केकरो निषेध नै करै छै । छैठ घाटमे मधेशी मात्र उपस्थित नै होइ छै । मात्र हिन्दू सेहो उपस्थित नै होइ छै । मात्र सम्पन्न आ धनिक सहभागी नै रहै छै ।
जाइतपाइतक आधारमे छुवाछूत नै देखाइत अइछ। छैठ पावैनप्रतिके आस्थामे केकरोमे विभेद्के अनुभूति नै होइ छै । सब आत्मसम्मान आ प्रतिष्ठासहित जीवनयापन करऔक, छैठ पावैनके ईएह सन्देश निश्कर्षमे आएत —सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय ।
(लेखक राससके कार्यकारी अध्यक्ष छैथ)